आजकल जिस सामाजिक परिवेश मै हम सब रह रहे है पति और पत्नी के छोटी छोटी बातो पर तलाक तक की नौबत आ जाती है जिस से दोनों का शादी शुदा जीवन नरक हो जाता है | जिस से समस्त परिवार को गहरा दुःख से गुजरना पड़ता है , परिवार के बुजर्ग असहाय से महशुस करते है, आखिर ऐसी नौबत क्यों व कैसे उत्पन्न होती है जिस की मुख्य निम्न वजह है”-
- वैचारिक मतभेद
- मानसिक शोषण
- शारिरिक शोषण
- छोटी छोटी बातो का ज्यादा अहमियत देना, छोटी बातों को अपने मान और सम्मान से जोड़ना , जिस से समस्त परिवार मै गृह क्लेश आरंभ हो जाता है |
- परिवार के बुजर्ग मूकदर्शक की भूमिका मै खड़े रहते है , क्योंकि परिवार के लोग उन की बातों को ज्यादा अहमियत नहीं देते है | जिस से दोनों पक्षो के परिवार को अपमानित होना पडता है |
- अपने परिवार के सदस्यों का सम्मान , उनकी बातो का ज्यादा महत्त्व देना , परिवार के सदस्यों का हर बात पर टोका टोकी , कही आने जाने पर प्रतिबन्ध
- फ़ोन पर बात करने पर रोक टोक |
- अपने पार्टनर को अहमियत ना देना, या बिल्कुल सहयोग ना करना
- अपने पार्टनर को सम्मान ना देना |
- छोटी छोटी गलतियों को संदेह की नजर से देखना |
- अपने पार्टनर को पब्लिक स्थान पर तव्वजो ना देकर दुसरे की बातो को ज्यादा तवाजो देना |
उक्त सभी बातों से सिर्फ घर परिवार बर्बाद हुए है ना की घर परिवार आबाद हुए है, हम सभी को अपने समाज को बदलने की लिये कुछ ना कुछ प्रयास करने चाहिए , पता नहीं हमारे आप के छोटे से प्रयास से किसी का घर परिवार टूट ने से बच जाये |
यदि ऐसी स्थिति आ भी जाये तो उस के लिये हम सब को दोनों पक्षो को समझा बुझा कर आपसी सहमति के आधार पर ही तलाक कराने का प्रयास करना चाहिए , क्योंकि जो तलाक बिना आपसी सहमति के आधार पर माननीय न्यायलय मै डाले जाते है , वो सभी मुकदमे समय और पैसे दोनों की निरंतर बर्बादी करते है तथा उन सभी मुकदमो के शीघ्र समाप्त होने की कोई सम्भावना भी नहीं होती |
अब कुछ कानूनी पहुलो पर ध्यान आकर्षित कर लेते है जिस के आधार पर आपसी सहमति के आधार पर माननीय न्यायलय मै वाद (मुकदमा) दायर किया जाता है :-
हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13-बी में आपसी सहमति से तलाक के लिए सबसे अनिवार्य शर्त का जिक्र किया गया है. शर्त ये है कि जब दोनों पार्टनर को साथ रहना असंभव लगने लगे तो एक साल या उससे अधिक समय तक एक-दूसरे से अलग रह रहे हो तो तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं |
कम से कम एक साल तक अलग रहने पर ही कर सकते हैं आवेदन अन्यथा एक साल पूर्ण होने तक रुकना पड़ेगा |
कानून के जानकार कहते हैं कि फैमली कोर्ट के नियमानुसार शादी के बाद से एक साल से अलग रह रहे पति – पत्नी ही कोर्ट में आपसी सहमति से तलाक का मामला पेश कर सकते हैं।
महिलाएं या तो पारिवारिक अदालत में याचिका दायर कर सकती हैं जिनके पास वैवाहिक घर स्थित है या उस इलाके की पारिवारिक अदालत में अधिकार क्षेत्र है जहां वह याचिका दायर करने के समय रह रही है।
न्यायालय में तलाक के लिए याचिका दायर करने के बाद न्यायालय दोनों को लगभग 6 महीने का समय देती है जिसके दौरान दोनों दोबारा साथ में रहने का निर्णय ले सकते हैं। 6 महीने का समय समाप्त होने पर अंतिम सुनवाई होती है जिसमें अगर दोनों पक्ष तलाक चाहते हैं तो कोर्ट द्वारा अंतिम निर्णय के दौरान दोनों का तलाक सुनिश्चित करता है।
लेकिन अब 6 महीने पहले भी दोनों पक्ष तलाक ले सकते है, सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए अमरदीप बनाम हरवीन कौर के महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय मै कुछ अति महत्वपूर्ण शर्तो का उल्लेख किया गया है , यदि उन शर्तो मै से दोनों पक्ष एक भी शर्त को पूर्ण करते है |
उक्त विषय पर ज्यादा जानकारी के लिये निसंकोच सम्पर्के करे
रणपाल अवाना एडवोकेट की कलम से……..